प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में ये बैठक होनी है जिसमें देश के सभी राज्यों में मुख्यमंत्री, केंद्र शासित राज्यों के लेफ्टिनेंट गवर्नर सहित कैबिनेट मंत्री और वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहेंगे.नई मोदी सरकार की ये पहली नीति आयोग की बैठक है जिसमें पानी के संकट और कृषि जैसे मुद्दों पर चर्चा संभव है लेकिन ममता बनर्जी ने यह कहते हुए इस बैठक से किनारा कर लिया है कि यह बैठक उनके लिए ‘निरर्थक’ है.उन्होंने कहा, “नीति आयोग के पास न तो कोई वित्तीय शक्तियां हैं और न ही राज्य की योजनाओं में मदद के लिये उसके पास शक्ति है. ऐसे में किसी भी प्रकार की वित्तीय शक्तियों से वंचित संस्था की बैठक में शामिल होना मेरे लिये फालतू है.”
ममता बनर्जी 30 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी कैबिनेट के शपथ ग्रहण समारोह में भी शामिल नहीं हुई थीं.इस सवाल पर बंगाल के वरिष्ठ पत्रकार निर्मल्या मुखर्ज़ी कहते हैं,”एक बात बेहद साफ़ है कि ममता बनर्जी एक राजनेता हैं, वो कभी आर्थिक एजेंडा को सामने नहीं रखती हैं. इसका सबसे बड़ा प्रमाण ये है कि वह जब से राज्य की मुख्यमंत्री हैं तब से अब तक कभी चेंबर ऑफ़ कॉमर्स की एक भी बैठक में शामिल नहीं हुई. इंडस्ट्रीयल और आर्थिक मामलों से जुड़े एजेंडे वाली बैठक होती है उससे ममता बनर्जी का कोई लेना-देना नहीं होता.””बंगाल में केंद्र की 67 योजनाएं थीं और इसे घटा कर चार या पांच कर दिया गया है. इसके लिए वो कह रही हैं कि नीति आयोग उनके काम का नहीं है. लेकिन नीति आयोग जो करेगा या नहीं करेगा उससे पहले उन्हें ख़ुद तो राज्य की ख़ातिर इस बैठक में शामिल होना ही चाहिए.”वो कहते हैं, ममता बनर्जी अपना राजनीतिक एजेंडा लेकर चलती हैं. वो यह नहीं देखतीं कि इससे राज्य का भला हो रहा है या नहीं. वो वही करती हैं जो उनके राजनीतिक एजेंडे के अनुकूल होता है.”
“मोदी ने अपनी रैली में बोला भी था कि दीदी हमारी स्कीम में भी अपना ठप्पा लगा लेती है, ये बात बिलकुल सही है. टीएमसी कार्यकर्ता केंद्र सरकार की योजनाओं को भी ममता बनर्जी सरकार की योजना बताते हैं और गांव के रहने वाले लोग जिन्हें सच नहीं पता होता वो इसे ही सच मान लेते हैं.”लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी 42 सीटों पर जीत का दावा किया था लेकिन वो 22 सीटों पर सिमट गईं.निर्मल्या कहते हैं, “अब ममता बनर्जी के दो ही उद्देश्य हैं कॉरपोरेशन चुनाव और 2021 में होने वाले बंगाल विधानसभा चुनाव में टीएमसी का बेहतर प्रदर्शन. इस वक़्त ममता बनर्जी अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही हैं, इसीलिए उन्होंने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए रणनीतिकार प्रशांत किशोर को बुलाया है. इस ख़बर के साथ ही बंगाल में बीजेपी ने नारा उछाल दिया है- ‘दीदी होई गया फीके, ताई डाकचे पीके’ यानी बंगाल में ममता बनर्जी का जादू फ़ीका हो गया है इसलिए पीके (प्रशांत किशोर) को बुलाया है.””बंगाल हर साल 50 हज़ार करोड़ रुपये का ब्याज रिज़र्व बैंक को दे रहा है और ये परंपरा लेफ़्ट के वक्त से चली आ रही है जब राज्य को इतने पैसे कर्ज़ के ब्याज पर भरने पड़ते हैं. लेकिन ममता बनर्जी चाहती थीं कि केंद्र सरकार की ओर से ये माफ़ कर दिया जाए. इस पर केंद्र ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह इस तरह राज्यों का कर्ज़ माफ़ नहीं कर सकती और ये वित्त आयोग का काम है. ममता बनर्जी ये बात नहीं मानतीं और यही वजह है कि इस तरह की बैठकों को छोड़ने से राज्य को इसका परिणाम भुगतना पड़ता है.”